Monday, November 28, 2011

पागल था मैं चाहत में जिसकी, Pagal tha me chahat me jiski


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



मेरा दिल जो प्यासा सा ,
भटकता रहा चाह में उसकी !
उसने ही मुझको डुबो दिया ,
बैठा था मैं नाव में जिसकी !
चाहत थी मेरे दिल में केवल ,
जिस से बस मिलने की !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

अपने दिल की सारी चाहत ,
उडेल दी मैने जिसके उपर !
उसने ही मुझको पीछे धकेल दिया ,
आगे बढ़ा मैं जिसके उपर !
उसने भी मुझको ना पहचाना ,
चाहत थी मेरे दिल में जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

उसके इंतजार में रहा बैठा ,
आएगी शायद वो मुझसे मिलने !
उसने केवल मुझको छला था ,
मगर माना ना ये मेरे दिल ने !
जिसके लिए पागलपन छाया ,
उसने ही उड़ाई मेरी चाहत की खुसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

जीवन की राहों पर चलते चलते ,
एक मोड़ ऐसा भी आया !
वो कभी थी मेरी बाहों में ,
मगर उसको मेरा दिल ना भाया !
जो मेरी ही ना हो पाई ,
वो भला कभी हो पाएगी किसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

उसने मुझको छला केवल ,
और मेरे दिल से बस खेला उसने !
उसने उसको ही अपना बनाया ,
केवल उसको फुसलाया जिसने !
उसने ही मुझको दूर किया ,
कभी बाहों में था मैं जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

प्यार का ये दस्तूर भी कैसा ,
बफा को बफा नही मिलती !
जो बेबफा होकर दिल को तोड़ता हो,
हसी बस उसके चेहरे पर खिलती !
उसने मेरी तरफ से नज़रें फेरी ,
मेरे इंतजार मे नज़रें रहती थीं जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

उसने मेरे दिल को ठोकर मारी ,
और मेरे दिल को रुला दिया !
पहले होठों का जाम पिलाकर ,
फिर तनहाई का जहर पिला दिया !
ना समझ पाया मैं उसके छल को ,
चाहत में अँधा था में जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

मेरा क्या है, मैं तो पहले , ,
था अकेला, और अब हूँ अकेला !
कुछ पल उसके साथ बिताए ,
अब फिर हो गया मैं अकेला !
उसने ही मुझको भुला दिया ,
निगाहों में बसा था में जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

मीठे से मेरे जीवन मे भी ,
कड़वा सा जहर घोल दिया उसने !
अपनी खुशियों की खातिर ,
मेरे साथ को भी छोड़ दिया उसने !
वो ही मुझको सोता छोड़ गयी ,
सोया था ज़ुल्फो की छाव में जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

क्या थी मेरे दिल की चाहत ,
ना कभी समझ पाई वो मुझको !
मैने तो बफा की उससे ,
फिर भी उसने बेबफा कहा मुझको !
उसने ही मुझको तडपया ,
मैं चाहत में जीया था जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

उसने मुझको कभी भाँपा ना ,
मेरे दिल को कभी जाना ना !
मैने जिसको अपना जीवन सौंपा ,
उसने मुझको अपना माना ना !
उसने ही दिल का जाम तोड़ दिया ,
पीता था होठों की मधुशाला जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,.
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

===हेमन्त चौहान===

No comments:

Post a Comment