Wednesday, November 9, 2011

तुझसे ही मेरा दिल हारा, Tujhse hi mera dil hara, Hemant Chauhan Poem


तुझसे ही मेरा दिल हारा,
तेरे सामने ही पस्त हुआ !
तेरी चाहत ही मे तो मैं,
अपने दिल से त्रस्त हुआ !
तूने ही तो किया चेतन,
मेरे अवचेतन मन को !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !1!

तेरा चेहरा दिखता मुझको,
चाँद की भी आभा में !
तेरे घर की मैं राह पकड़ता,
हर दिन की हर प्रभा में !
मेरे जीवन की एक गाथा,
गाने का अब वक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !2!

जितना बाहों में भर लू तुझको,
मेरे लिए तो कम है उतना !
पिघल जाऊ आगोश में तेरे,
हिमालय भी ना पिघला हो जितना !
तुझमे समा जाने का मेरा,
जमाने से अब एक वक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !3!

तुझसे मिलने के बाद ही समझा,
जीवन के मधु गीतों को !
मैंने तुझको अपना बनाया,
तोड़कर समाज की रीतो को !
जीवन के अंधकार का सूरज,
तुझसे मिलकर ही तो अस्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !4!

तेरी चाहत को ही बस मैने,
जीवन का  बना गीत लिया !
तूने ही तो हराकर मुझको,
मेरे दिल को भी जीत लिया !
ना हरा सका मुझको कोई,
बस तेरे सामने ही मैं पस्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !5!

मैने तुझको देखा था जब,
तेरे बारे में विचार किया !
तूने ही तो मेरे दिल में,
स्फूर्ति का संचार किया !
तेरा साथ पाकर ही तो,
मेरा दिल और सशक्‍त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !6!

जीवन की रासधारा में,
बहता रहा मैं निरंतर सा !
पास आ जाऊ तेरे इतना,
ना रहे कोई भी अंतर सा !
सुला ले ज़ुल्फो की छाव मे मुझको ,
मेरे सोने का अब वक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !7!

आगोश में लेकर मैं तुझको,
डूब ही जाऊ मैं बस तुझमें !
ना कोई कभी दूरी रहे,
आ समा जा तू भी मुझमें !
इस पल का इंतजार था दिनों से,
इंतजार के अंत का भी वक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !8!

बिन चाहत के कभी भी तो,
मिलता नही किसी से कोई !
बिन प्यार के इस दुनिया मे ,
जीता नही हसी से कोई !
पिघल कर आगोश में तेरे ,
मैं भी तो अब त्रप्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !9!

पल थे वो जन्नत के जैसे,
साथ में बिताए जो तेरे !
तू ही तो बसी है बस अब,
दिल में और दिमाग़ में मेरे !
याद किया तुझको निस दिन ,
जैसे तेरी चाहत का मैं भक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !10!

चाहत उडेल दी पूरे जहाँ की,
तुझ पर ही तो बस मैने !
मेरे दिल में कोई और नहीं,
चाहा है बस तुझको मैने !
अब तो तेरी चाहत का पहरा,
मेरे दिल पर और सक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !11!

जीवन की जो राह चुनी,
वो तुझ तक ही तो जाती है !
जब तू नही आती मिलने,
तेरी याद तो मिलने आती है !
याद तो तेरी दिल में हर दम,
जैसे दिल पर उनका गस्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !12!

मेरे दिल मे भी डाला डेरा,
दिल मैं जैसे बस गयी तू है !
दुनिया भी अब तो पास में मेरे,
मेरी दुनिया जो बन गयी तू है !
याद नही निकलती दिल से,
तुझे याद करने का मैं अभ्यस्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !13!

तेरी चाहत को मेरे दिल से,
निकाल नही सकता कोई !
मोहब्बत को जो बोल के सुना दे,
दुनियाँ मे नही वक्ता कोई !
बहुत दिनों मे आई तू मिलने,
इंताज समाप्ति का तो वक्त हुआ !.
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !14!

===हेमन्त चौहान==

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