Monday, November 28, 2011

पागल था मैं चाहत में जिसकी, Pagal tha me chahat me jiski


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



मेरा दिल जो प्यासा सा ,
भटकता रहा चाह में उसकी !
उसने ही मुझको डुबो दिया ,
बैठा था मैं नाव में जिसकी !
चाहत थी मेरे दिल में केवल ,
जिस से बस मिलने की !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

अपने दिल की सारी चाहत ,
उडेल दी मैने जिसके उपर !
उसने ही मुझको पीछे धकेल दिया ,
आगे बढ़ा मैं जिसके उपर !
उसने भी मुझको ना पहचाना ,
चाहत थी मेरे दिल में जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

उसके इंतजार में रहा बैठा ,
आएगी शायद वो मुझसे मिलने !
उसने केवल मुझको छला था ,
मगर माना ना ये मेरे दिल ने !
जिसके लिए पागलपन छाया ,
उसने ही उड़ाई मेरी चाहत की खुसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

जीवन की राहों पर चलते चलते ,
एक मोड़ ऐसा भी आया !
वो कभी थी मेरी बाहों में ,
मगर उसको मेरा दिल ना भाया !
जो मेरी ही ना हो पाई ,
वो भला कभी हो पाएगी किसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

उसने मुझको छला केवल ,
और मेरे दिल से बस खेला उसने !
उसने उसको ही अपना बनाया ,
केवल उसको फुसलाया जिसने !
उसने ही मुझको दूर किया ,
कभी बाहों में था मैं जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

प्यार का ये दस्तूर भी कैसा ,
बफा को बफा नही मिलती !
जो बेबफा होकर दिल को तोड़ता हो,
हसी बस उसके चेहरे पर खिलती !
उसने मेरी तरफ से नज़रें फेरी ,
मेरे इंतजार मे नज़रें रहती थीं जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

उसने मेरे दिल को ठोकर मारी ,
और मेरे दिल को रुला दिया !
पहले होठों का जाम पिलाकर ,
फिर तनहाई का जहर पिला दिया !
ना समझ पाया मैं उसके छल को ,
चाहत में अँधा था में जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

मेरा क्या है, मैं तो पहले , ,
था अकेला, और अब हूँ अकेला !
कुछ पल उसके साथ बिताए ,
अब फिर हो गया मैं अकेला !
उसने ही मुझको भुला दिया ,
निगाहों में बसा था में जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

मीठे से मेरे जीवन मे भी ,
कड़वा सा जहर घोल दिया उसने !
अपनी खुशियों की खातिर ,
मेरे साथ को भी छोड़ दिया उसने !
वो ही मुझको सोता छोड़ गयी ,
सोया था ज़ुल्फो की छाव में जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

क्या थी मेरे दिल की चाहत ,
ना कभी समझ पाई वो मुझको !
मैने तो बफा की उससे ,
फिर भी उसने बेबफा कहा मुझको !
उसने ही मुझको तडपया ,
मैं चाहत में जीया था जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

उसने मुझको कभी भाँपा ना ,
मेरे दिल को कभी जाना ना !
मैने जिसको अपना जीवन सौंपा ,
उसने मुझको अपना माना ना !
उसने ही दिल का जाम तोड़ दिया ,
पीता था होठों की मधुशाला जिसकी !
उसने ही मुझको ठोकर मारी ,.
पागल था मैं चाहत में जिसकी !!

===हेमन्त चौहान===

Thursday, November 24, 2011

जिसको कदर ना मेरे दिल की, Jisko kadar na mere dil ki


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



जिसको कदर ना मेरे दिल की ,
मेरे साथ वो रहेगी कैसे !
जिसको पसंद ना हो मेरा आँगन ,
वो मेरे घर में रहेगी कैसे !
पसंद नापसंद की इस भँवर मे ,
खुद ही डूबता चला गया मैं !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे  !1!

समाज की बंधित सी राहों पर ,
चलकर पहुँचा मैं उससे मिलने !
मुझको गैर समझ कर वो ,
ना बाहर आई मुझसे मिलने !
जिसने मेरी चाहत ना समझी ,
वो किसी को समझेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे  !2!

पकड़ कर हाथ को मेरे पहले ,
बीच राह मे उसने छोड़ दिया !
पहले आँखों मे झाँककर मेरे ,
फिर अपना मुँह मोड़ लिया !
उसने मेरे ईमान को ना जाना  ,
तो किसी को भला पहचानेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे  !3!

पहले साथ में रहकर मेरे ,
मुझको  बाँहों में अपनी भर लिया !
अपनी छल भारी चाहत से ,
मुझको अपना ही कर लिया !
जिसकी चाहत में छल भरा हो ,
वो किसी को चाहेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !4!

पहले उसने कहा मुझसे ये ,
तुमने ही चाहा केवल मुझको !
मेरी चाहत की उसने की तुलना ,
कौन चाहता है ज़्यादा उसको !
जो चाहत की तुलना करती हो ,
वो किसी से वफ़ा करेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !5!

उसकी महत्वाकांक्षाए केवल ,
अपनी ही खुशियाँ पाने की !
उसको अपनी हसी से मतलब ,
ना परवाह किसी का दिल टूट जाने की !
जो दिलों को तोड़कर खुशी मनाए,
वो किसी से प्यार करेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !6!

जन्नत ना मिले भले किसी को ,
सोहरत ना मिले भले किसी को !
मिल जाएँ सारे दुख जहाँ के ,
मगर बेवफा ना मिले किसी को !
जो वफ़ा को ही ना पहचानती हो ,
वो किसी से वफ़ा करेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !7!

जो अपनी छल की चाहत से ,
किसी की निश्च्छलता को छलती हो !
जो दिलों को राह मे फेंक कर ,
उन पर पैर रख कर ही चलती हो !
जिसको ना हो कदर दिलों की ,
वो किसी को दिल में बसाएगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !8!

पहले पास में बैठ कर मेरे ,
अपनी जुल्फ़ो की छाँव मे सुला दिया !
जब मिल गया उसको दूसरा साथी ,
तो उसने मुझको भुला दिया !
जो सोता हुआ ही छोड़ जाए ,
वो किसी का साथ निभाएगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !9!

जो जनम जनम की कसमें खाकर ,
भुला दे अपने वादों को !
जो दिल को ठोकर मारकर ही ,
पूरा करती हो अपने इरादों को !
जो अपना कहकर छोड़ चले ,
भला वो किसी की बनेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !10!

पहले उसने मेरी चाहत देखी ,
फिर उसने उसको तोल दिया !
मेरी निश्च्छल चाहत का ,
बाजार मे भी उसने मोल किया !
जो चाहत की भी तुलना करती हो ,
वो किसी से प्रेम करेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !11!

उसको अच्छी लगी किसी की ,
चाहत मेरी चाहत से ज़्यादा !
उसके साथ वो चली गयी ,
तोड़कर किया हुआ मुझसे वादा !
जिसने मेरी चाहत को तोला  ,
वो किसी की चाहत को समझेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !12!

मैं रोता रहा अकेला ही ,
बिछड़ कर तन्हाई में जिसकी !
मेरे आँसुओं को पानी कहकर ,
उसने उड़ाई मेरी खुसकी !
जिसने मेरे आंशू ना पहचाने ,
वो किसी को भला पहचानेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !13!

अपनी खुशियों को साथ मे लेकर ,
इठलाती और इतराती वो !
नज़र फेर कर अब तो मुझसे ,
चुपके से ही निकल जाती वो !
जिसने मुझको धोखा दिया  ,
वो मुझसे नज़र मिलाएगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !14!

एक दिन अंबर से बूँदों की ,
गिरती हुई बौछार सी देखी !
सहसा लौट आई एक दिन वो ,
अपने पास मैने  खड़ी देखी !
मेरा दिल  उसने पहले ही तोड़ा ,
टूटे दिल को दोबारा तोड़ेगी कैसे
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !15!

इस बार भी तो उसने मुझको ,
बहकना चाहा अपनी बातों से !
मगर मैं था सचेत पहले से ,
पिछली बीती हुई बातों से !
जिसने एक बार दिया हो धोखा  ,
वो दोबारा बफा करेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !16!

उसने मुझको विस्वास दिलाना चाहा ,
बफा का नाटक करते करते !
उसकी छल भारी बातें लगती ,
जैसे फूल हैं मुँह से उसके झड़ते !
जिसने बोला हो झूंठ हमेशा ,
भला अब वो सच बोलेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !17!

मेरा प्यार मोहताज कभी नही ,
किसी और की चाहत का !
मेरा जीवन मोहताज नही ,
किसी की दी हुई राहत का !
जिसने मुझे सच्चा ना माना हो ,
वो किसी को सच्चा मानेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !18!

केवल उसने रिस्ते जोड़े ,
झूठी चाहत के आधार पर ही !
उसको कभी भी ना भरोसा हुआ ,
मेरे निश्च्छल से प्यार पर भी  !
जिसके मन में मैल भरा हो ,
वो किसी से सच बोलेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !19!

उसने छल भारी चाहत से ,
मेरा निर्मल मन तोड़ा !
बेवफ़ाई का दर्द कुछ ऐसा ,
आँखों ने सपने देखना छोड़ा !
आँखों से सपने तो छीन लिए ,
मगर नज़रों को छीनेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !20!

दूर दूर तक जाकर देखा ,
हर जगह नज़रें दौड़कर देखा !
जाकर पास में उसके मैने ,
लबों का जाम पीकर देखा !
जो सपने दिखाकर भूल जाए ,
वो सपनों को साकार करेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !21!

पहले आगोश का शह्द पिलाकर ,
तन्हाई का जहर पीला दिया !
पहले खुशियों की राह दिखाकर ,
गमों की भीड़ से मिला दिया !
जिसने दिए गम ही मुझको ,
वो किसी को खुशियाँ देगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !22!

छोड़कर अपनी निज खुशियों को ,
खुशियाँ ही दी मैने उसको
मैने तो याद रखा उसको ,
मगर भुला दिया उसने मुझको !
जिसने मुझको ही भुला दिया ,
वो किसी को याद रखेगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !23!

ना बचा अब कुछ भी साबित ,
मेरा दिल भी अब टूट लिया !
अपने आगोश का नशा कराकर ,
मेरे दिल को भी लूट लिया !
बस लूटना हो जिसका मकसद ,
वो किसी को कुछ देगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !24!

उसका दिल इतना निष्ठुर ,
अंशुओं को भी ना पहचानती वो !
जिसने पहचान दी उसको ,
उसको भी ना पहचानती वो !
जिसको खोट दिखा मेरे साथ में ,
वो किसी से रिस्ता निभाएगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !25!

अपना सब कुछ भूलकर भी ,
अपनी दुनियाँ बनाया मैने जिसको !
अपना सारा जीवन सौंपकर भी ,
अपना जीवन मैने माना उसको !
जो भरोसा देकर धोखा दे दे ,
वो किसी को जीवन में बसाएगी कैसे !
जिसको मेरा साथ ना भाया हो ,
वो किसी के साथ रहेगी कैसे !26!



===हेमन्त चौहान===
 

Sunday, November 20, 2011

रह गया जो अपूर्ण सा स्वप्न मेरा Rah gaya jo apurn sa swapn mera


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



रह गया जो अपूर्ण सा स्वप्न मेरा,
वो तो पूरा अब भी ना हुआ !
जीवन की अंधकारी राहों मे,
किसी सूरज का उजाला भी ना हुआ !
दुख से पीड़ित सा आहत मन,
बस कहता रहता मुझसे  मेरा !
वो तो मेरा जब भी ना हुआ,
वो तो मेरा अब भी ना हुआ !!

याद रखा मैने बस उसको,
बाकी सारी दुनिया भुला दी !
मेरी यादें निकाल कर दिल से,
अपने दिल के बाहर उसने सुला दी !
क्या था मेरे दिल के अंदर,
इसका तो उसको अहसास भी ना हुआ !
वो तो मेरा जब भी ना हुआ,
वो तो मेरा अब भी ना हुआ !!

मैने उसको अपने दिल मे बिठाया,
मगर उसने रखा मुझको बाहर !
उससे मिलने की खातिर खुद को,
मैने निकाला सूनी राहों पर बाहर !
इस समाज की बंधित सी मंज़िल का,
रास्ता तो पूरा अब भी ना हुआ !
वो तो मेरा जब भी ना हुआ,
वो तो मेरा अब भी ना हुआ !!

जो उठाया था फल मैने खाने को,
उसको तो अब तक खा ना सका !
भुला दिया खुद को जिसकी खातिर,
वो ही मुझको याद रख ना सका !
तलास लिया उसने अब एक साथी,
मगर वो मेरा साथी कभी ना हुआ !
वो तो मेरा जब भी ना हुआ,
वो तो मेरा अब भी ना हुआ !!

===हेमन्त चौहान===

Tuesday, November 15, 2011

याद अभी तक पूरी मुझको Yad abhi tak puri mujhko

Hemant Chauhan

Hindi Kavita




याद अभी तक पूरी मुझको ,
उसकी प्यारी प्यारी सी बातें हैं !
ऐसा था कुछ साथ भी उसका ,
जैसे फूल पर भ्रमर मंडराते हैं !
साथ मे बीता उसके हर पल ,
यादो को ताज़ा ही तो करता है !
उसकी खुशियाँ ही तो बस ,
मेरी  खुशियों की सौगातें है !!

काम किया बस मैने वो ही ,
जिसमे खुशी उसकी ही तो थी !
वो तो खुश रह पाएगी सदा ,
उसने मुझसे  नफ़रत ही तो की!
जिन रातो मे उसका सपना दिखता ,
बन ही जातीं वो हसीं रातें हैं !
उसकी खुशियाँ ही तो बस ,
मेरी खुशियों की सौगातें है !!

उसकी खुशियो की खातिर तो .
मैं उसकी नफ़रत भी सह लूँगा!
महल ही मिले उसे खुशियों का ,
बेशक मे झोंपड़ी में रह लूँगा!
हर बात मुझको फीकी लगती ,
जब से सुनी मैने उसकी बातें हैं!
उसकी खुशियाँ ही तो बस ,
मेरी  खुशियों की सौगातें है !!

जीवन मेरा उसका  दर्पण ,
मेरी आँखों मे  उसकी ही छाया है!
मुझे गाना ना आता हो बेशक ,
उसके लिए मैने फिर भी गया है!
मेरे जीवन के बहतर पल ,
उसके साथ की ही तो मुलाक़ातें है!
उसकी खुशियाँ ही तो बस ,
मेरी  खुशियों की सौगातें है !!

उसके देखे बिन अब मुझको ,
चैन भी तो नही मिल पता है!
नफ़रत भी मैं उसको दिखता ,
जब उसकी खुशी का ख़याल आता है!
उसकी खुशी के लिए मैं नफ़रत दिखाता ,
बेशक लगती उसको मेरी बुरी बातें हैं!
उसकी खुशियाँ ही तो बस ,
मेरी भी खुशियों की सौगातें है !!

परवाह नही अपनी खुशियों की ,
चाहत उसकी ख़ुसीयों की रखता हूँ!
भूलकर मुझे वो रहे ख़ुसी से ,
इसलिए ही तो नफ़रत दिखाता हूँ!
उसकी यादों मे ही मैने अब तक ,
ना जाने जागीं कितनी ही रातें हैं!
उसकी खुशियाँ ही तो बस ,
मेरी खुशियों की सौगातें है !!

उसके साथ बीते पल ही तो ,
जीवन के सबसे बहतर पल हैं!
मेरे आज का अतीत भी तो ,
उसके साथ में बीता कल है!
अभी तक भी तो याद है आतीं ,
उसकी ही हसीन मुलाक़ते है !
उसकी खुशियाँ ही तो बस ,
मेरी  खुशियों की सौगातें है !!

उसकी खुशियों की चिंता मुझको ,
अपनी खुशी को भुलाकर भी!
उसको खुश मैं देखना चाहूं ,
जीवन दाव पर लगाकर भी!
जीवन के क्या मायने अब हैं ,
अहं तो उसके साथ बीती रातें हैं!
उसकी खुशियाँ ही तो बस ,
मेरी भी खुशियों की सौगातें है !!

===हेमन्त चौहान===

Monday, November 14, 2011

जीवन के रस कमंडल में, jeevan ke ras kamandal me


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



जीवन के रस कमंडल में ,
देश प्रेम की रस धारा हो !
वो मुझको भी प्यारा होता ,
जिसको मेरा देश प्यारा हो !
ना हो चाहे धन वैभव ,
ना हो चाहे कभी यश गान मेरा !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य  हमारा हो !!

देश की शान भी तो ,
जनता की भी शान होती !
देश रहे सुरक्षित जब ,
तब जनता भी रक्षित होती !
अपने देश को आगे बढ़ाएँगे ,
ये भी संकल्प हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य  हमारा हो !!


निजता के वैभव की खातिर ,
देश से ना गद्दारी करना !
देश के दुश्मन से मिलकर ,
कभी  कोई ना यारी करना !
देश रहे सुरक्षित हमारा ,
बस यही भाव हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य हमारा हो !!

धर्म के नामपर कभी कोई ,
अपने देश को मत बाँटो !
जो बाँटने की बात करे ,
उसको पकड़कर सब डांटो !
अपने निज धर्म से पहले ,
रास्ट्र धर्म बस हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य  हमारा हो !!

जिसमें ना हो हित देश का ,
उस काम पर मत जाओ !
संपन्न बनाओ अपने देश को ,
विदेशों के सामने मत गिडगिडाओ !
देश के सम्मान को उँचा करना ,
पहला काम हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य  हमारा हो !!

धर्म जाति के नाम पर देश ,
बॅट रहा, मत उसको बंटने दो तुम !
देश के हितो की खातिर तो ,
सब एक  हो जाओ तुम !
देश बाँटने वाला व्यक्ति तो ,
केवल दुश्मन ही  हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य  हमारा हो !!

जन जन में जागरण कर दो ,
देश की एकता का सब !
गद्दारों के भी पैर उखड़ेंगे ,
एक हो जाएँगे हम सब जब !
हम धर्म नही भारतवाशी हैं ,
बस यही नारा हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य  हमारा हो !!

एक होकर तो देखो तुम ,
एकता का क्या रस होता !
एक हो जाते हैं जब सब तो ,
गद्दारों का क्या वश होता !
एकता भी हम सब में हो ,
और रास्ट्र धर्म हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य  हमारा हो !!

मेरा देश शसक्त हो ऐसा ,
जो किसी से ना डरता हो !
जनता के हित की खातिर ,
जनता के मन का मंथन करता हो !
देश की जनता पर वैभव हो ,
और उन्नत देश हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य  हमारा हो !!

वो तो देश का ही दुश्मन ,
जो तिरंगा फहराने से रोकता हो !
जो देश में तिरंगा फहराने बालों को ,
कभी कहीं भी टोकता हो !
ऐसे गद्दार के तो शीने पर भी ,
तिरंगा फहरा हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य हमारा हो !!

देश के सम्मान मे ही ,
हर जगह तिरंगा लहरा दो तुम !
तिरंगा रोकने वालो की ही ,
छाती पर तिरंगा लहरा दो तुम !
अपने देश का सम्मान ही ,
केवल सम्मान हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य  हमारा हो !!

अपनी निज छमताओं को भी ,
देश हित में लगा  दो तुम !
देश के सम्मान को भी ,
अपने जीवन से सज़ा दो तुम !
दुनिया के देशों की शूची में ,
पहला स्थान हमारा हो !
देश करे उन्नति हमारा ,
यही उद्देश्य  हमारा हो !!

===हेमन्त चौहान===

Sunday, November 13, 2011

देश की खातिर लड़ना होगा Desh Ki Khatir Ladna Hoga


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



जो भूल की है तुमने हमने ,
उसका जुर्माना तो भरना होगा !
नकाब पहने हुए नेताओं को ,
बेनकाब तो अब करना होगा !
उठकर खड़े हो देश की खातिर ,
अब देश तुमको पुकार रहा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !१!

म्रत्यु की परवाह ना करके ,
जीवन भी दाव पर लगा तो तुम !
देश में ही छुपे बैठे गद्दारों को ,
अब ठिकाने  लगा दो तुम !
नेताओं के झूठे वादों को भी ,
अब सबको पहचानना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !२!

पहंचानो देश मे ही छुपे बैठे ,
देश के ही गद्दारों को !
खुद भी सचेत हो जाओ तुम ,
और सचेत करो अपने यारों को !
देश के दुश्मन जो सत्ता में ,
उनको भी सत्ता से उतरना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !३!

सत्ता के मद में होकर लोभी ,
इठलाते और इतराते जो हैं !
नौकर होकर भी जनता के ,
खुद को मलिक बताते जो हैं !
अब बाहर करके ही सत्ता से ,
उनको भी सबक सिखाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !४!

साथ ना देना देश के गद्दारों का ,
वरना तुम भी गद्दार कहलाओगे !
गद्दारों की मीठी ज़ुबान मे फँस कर ,
एक दिन खुद ही पछताओगे !
देश की उज्ज्वल्ता की खातिर ,
गद्दार नेताओं को पहचानना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !५!

भोली सी सूरत गद्दारों की ,
ये बात भी मीठी मीठी करते हैं !
देश की जनता के पैसे को ,
अपनी जेब में ही तो भरते हैं !
व्यवस्था परिवर्तन की खातिर ,
सत्ता परिवर्तन तो करना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !६!

सत्ता में बैठे हुए जो नेता ,
देश हित की कभी बात ना करते !
जनता के नौकर होकर भी ,
जनता के हित की बात ना करते !
ऐसे गद्दार नेताओं को भी तो ,
सत्ता से अब उखाड़ना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !७!

देश मे जो भ्रस्ट नेता हैं ,
वो तो देश के गद्दार के जैसे !
इस बार भी देश को लूट रहे ,
पिछले हर बार के जैसे !
अगर ये राज़ी से ना मानें तो ,
उनको चुनाव मे हराना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !८!

निज स्वार्थ की ही खातिर जो ,
भोली जनता पर डंडे बरसवाते हैं !
जो रास्ट्र का अन्न खाकर भी ,
रास्ट्र गीत गाने में ही कतराते हैं !
ऐसे गद्दारों के समूल नाश का ,
एक अपराध तो करना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !९!

स्वार्थ की खातिर तो ये नेता ,
अपने ईमान को भी बेच देंगें !
नही जागे हम अब भी तो ,
ये गद्दार देश को भी बेच देंगे !
देश के उपर मरने वाले लोगों को ,
अपना नेता अब बनाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !१०!

अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर ,
देश की जनता को भ्रमित करते !
देश के लिए लड़ने वालों को भी ,
डराने में भी ये नही डरते !
जनता का अहित करने वाले ,
सब नेताओं को अब जाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !११!

जनता की महनत की कमाई ,
लूटते और अवैध खनन जो करते !
खुद जो मज़े में रहते नेता ,
हमारी स्वतंत्रता का हनन वो करते !
स्वतंत्र होकर भी हम स्वतंत्र नही ,
अब पूर्ण स्वतंत्रता को पाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !१२!

देश की जनता के प्रतिनिधि होकर ,
गुलामी करते जो औरों की !
स्वार्थ की खातिर वो अपने ,
जनता से अन्याय करते जोरों की !
गद्दारों के पंजों मे फँसे हुए ,
अपने देश को अब बचाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !१३!

देश में अंधकार ना हो कोई ,
देश में अन्याय ना हो कोई !
जगा दो अब उस जनता को भी ,
देश की जनता है जो सोई !
घमंड मे बैठीं सरकारों को ,
तख्ता पलट कर उतरना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !१४!

जो समझ बैठीं हैं अपनी बापौती ,
इस देश की ही सत्ता को !
जो लगा रहीं हैं दाव पर भी ,
अपनी ही धरती माता को !
ऐसी सरकारों को तो अब ,
जड़ से उखाडकर फेंकना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !१५!

जनता के प्रतिनिधि होकर भी ,
गुलामी आलाकमान की करते हैं !
आलाकमान तो उनकी जनता ,
जिसको तो याद ही ना करते हैं !
ऐसे गद्दारों को अब तो बस ,
हर चुनाव में ही हराना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !१६!

निजता को छोड़कर पीछे ही ,
आगे बढ़े जो बस देश की खातिर !
हर कोई समझे ईमान देश को ,
कोई ना हो उनमें शातिर !
जो शीश कटा दें देश की खातिर ,
ऐसे लोगों को चुनना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !१७!

देश की जनता ना छली जाए ,
बने ऐसा एक साफ सा रास्ता !
देश के हितों की खातिर ही ,
बने ऐसी एक बहतर सी व्यवस्था !
व्यवस्था परिवर्तन की खातिर तो ,
एक आंदोलन अब करना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !१८!

हटना मत तुम कभी पीछे को ,
गद्दारों से कभी मत डरना कोई !
जीवन भी दाव पर लगा करके ,
देश के लिए लड़ना हमेशा हर कोई !
खुद का सर कटा कर भी ,
अपने देश को बचाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !१९!

देश की जनता का गौरव तो ,
अपने देश का ही गौरव है !
देश का गौरव हो जब उँचा ,
अपना गौरव ही तो जब है !
अपना निज गौरव छोड़कर भी ,
देश का गौरव बढ़ाना होगा !
जागकर देश की खातिर तुमको ,
देश की खातिर लड़ना होगा !२०!

===हेमन्त चौहान===





Thursday, November 10, 2011

मैने उसको चाहा दिल से , maine usko chaha dil se


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



मैने उसको चाहा दिल से ,
मेरे दिल को वो जान ना पाई !
मैने खुद को उसका बनाया ,
फिर भी मेरी वो बन ना पाई !
उसने मुझको अपनाकर भी ,
बेगाना ही तो बना दिया !
पहले मुझको वो जान ना पाई ,
अब मुझको पहचान ना पाई !!

जो पल मेरे साथ बिताए ,
उन पलों को भी उसने भुला दिया !
मुझ को ना पहचानकर उसने ,
मेरे दिल को भी रुला दिया !
मैं जब उससे मिलने पहुँचा ,
वो बोली, तुम कौन हो भाई !
पहले मुझको वो जान ना पाई ,
अब मुझको पहचान ना पाई !!

जिसकी खातिर मैने पहले ,
खुद के जीवन को लुटा दिया !
उसने तो मुझको भी अब ,
अपने जीवन से ही हटा दिया !
अपना जीवन उसको सौपा ,
मगर साँसें मेरी वो ले जा ना पाई !
पहले मुझको वो जान ना पाई ,
अब मुझको पहचान ना पाई !!

जो थी पहले साथ में मेरे ,
अब मेरी वो तकदीर में नही !
कुछ खुशियाँ जो मेरी थी ,
अब तो वो मेरे घर में नही !
समझ कर मुझको केवल पागल ,
उसको मेरी चाहत ना भाई !
पहले मुझको वो जान ना पाई ,
अब मुझको पहचान ना पाई !!

उसने मुझको देखा था तो ,
मगर निकल गयी अनदेखा करके !
चलती थी कभी साथ में मेरे ,
वो आगे बढ़ गयी बीच मे रेखा करके !
उस पर जहाँ की चाहत लुटा दी ,
वो मेरी चाहत समझ ना पाई !
पहले मुझको वो जान ना पाई ,
अब मुझको पहचान ना पाई !!


=== हेमन्त चौहान ===

Wednesday, November 9, 2011

मेरी आँखों से मेरे आंशू, Meri ankhon me mere anshu


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



मेरी आँखों से मेरे आंशू,
मोती बनकर ही छलकते!
मेरे दर्द के आंशू भी तो ,
उसको तो पानी ही लगते!
क्या दर्द छुपा हुआ है ,
मेरे दिल के किसी कोने में!
काश मेरे आंशू भी कभी ,
ज़ुबान से भी कह सकते!!

मेरे दिल के दर्द को तो ,
वो भी कैसे समझ पाती!
मेरे बहते हुए आंशुओं को ही ,
ना वो कभी समझ पाती!
काश मेरे अंशू भी कभी ,
मेरे दर्द को उसे समझा सकते!
काश मेरे आंशू भी कभी ,
ज़ुबान से भी कह सकते!!


उसको तो लगा ये शायद ,
मैं नही चाहता उसको!
कोई भी ना सिवा इसके ,
चाह सके मेरा दिल जिसको!
काश मेरे आंशू ही ,
मेरे दर्द को दिल से बहा सकते!
काश मेरे आंशू भी कभी ,
ज़ुबान से भी कह सकते!!


मेरी ना शायद पहचान कोई ,
मेरे ना अब अरमान कोई!
उसको लगने लगा शायद ,
मेरा ना अब ईमान कोई!
मेरे आंशू दर्द है मेरा मगर ,
उसकी खुशियों को बहा नही सकते!
काश मेरे आंशू भी कभी ,
ज़ुबान से भी कह सकते!!


===हेमन्त चौहान===

तुझसे ही मेरा दिल हारा, Tujhse hi mera dil hara, Hemant Chauhan Poem


तुझसे ही मेरा दिल हारा,
तेरे सामने ही पस्त हुआ !
तेरी चाहत ही मे तो मैं,
अपने दिल से त्रस्त हुआ !
तूने ही तो किया चेतन,
मेरे अवचेतन मन को !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !1!

तेरा चेहरा दिखता मुझको,
चाँद की भी आभा में !
तेरे घर की मैं राह पकड़ता,
हर दिन की हर प्रभा में !
मेरे जीवन की एक गाथा,
गाने का अब वक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !2!

जितना बाहों में भर लू तुझको,
मेरे लिए तो कम है उतना !
पिघल जाऊ आगोश में तेरे,
हिमालय भी ना पिघला हो जितना !
तुझमे समा जाने का मेरा,
जमाने से अब एक वक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !3!

तुझसे मिलने के बाद ही समझा,
जीवन के मधु गीतों को !
मैंने तुझको अपना बनाया,
तोड़कर समाज की रीतो को !
जीवन के अंधकार का सूरज,
तुझसे मिलकर ही तो अस्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !4!

तेरी चाहत को ही बस मैने,
जीवन का  बना गीत लिया !
तूने ही तो हराकर मुझको,
मेरे दिल को भी जीत लिया !
ना हरा सका मुझको कोई,
बस तेरे सामने ही मैं पस्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !5!

मैने तुझको देखा था जब,
तेरे बारे में विचार किया !
तूने ही तो मेरे दिल में,
स्फूर्ति का संचार किया !
तेरा साथ पाकर ही तो,
मेरा दिल और सशक्‍त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !6!

जीवन की रासधारा में,
बहता रहा मैं निरंतर सा !
पास आ जाऊ तेरे इतना,
ना रहे कोई भी अंतर सा !
सुला ले ज़ुल्फो की छाव मे मुझको ,
मेरे सोने का अब वक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !7!

आगोश में लेकर मैं तुझको,
डूब ही जाऊ मैं बस तुझमें !
ना कोई कभी दूरी रहे,
आ समा जा तू भी मुझमें !
इस पल का इंतजार था दिनों से,
इंतजार के अंत का भी वक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !8!

बिन चाहत के कभी भी तो,
मिलता नही किसी से कोई !
बिन प्यार के इस दुनिया मे ,
जीता नही हसी से कोई !
पिघल कर आगोश में तेरे ,
मैं भी तो अब त्रप्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !9!

पल थे वो जन्नत के जैसे,
साथ में बिताए जो तेरे !
तू ही तो बसी है बस अब,
दिल में और दिमाग़ में मेरे !
याद किया तुझको निस दिन ,
जैसे तेरी चाहत का मैं भक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !10!

चाहत उडेल दी पूरे जहाँ की,
तुझ पर ही तो बस मैने !
मेरे दिल में कोई और नहीं,
चाहा है बस तुझको मैने !
अब तो तेरी चाहत का पहरा,
मेरे दिल पर और सक्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !11!

जीवन की जो राह चुनी,
वो तुझ तक ही तो जाती है !
जब तू नही आती मिलने,
तेरी याद तो मिलने आती है !
याद तो तेरी दिल में हर दम,
जैसे दिल पर उनका गस्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !12!

मेरे दिल मे भी डाला डेरा,
दिल मैं जैसे बस गयी तू है !
दुनिया भी अब तो पास में मेरे,
मेरी दुनिया जो बन गयी तू है !
याद नही निकलती दिल से,
तुझे याद करने का मैं अभ्यस्त हुआ !
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !13!

तेरी चाहत को मेरे दिल से,
निकाल नही सकता कोई !
मोहब्बत को जो बोल के सुना दे,
दुनियाँ मे नही वक्ता कोई !
बहुत दिनों मे आई तू मिलने,
इंताज समाप्ति का तो वक्त हुआ !.
तेरे होठों की मधुशाला,
पीकर ही तो मैं मस्त हुआ !14!

===हेमन्त चौहान==