Monday, April 22, 2013

Hemant Chauhan Hindi kavita हेमन्त चौहान हिन्दी कविता Hindi Poem

उसे याद रखूँ कि भूल चलूँ मैं साथ रहूँ या छोड़ चलूँ
मैं जीवन रिस्ता साँसों का बनाये रखूँ या तोड़ चलूँ
मेरे दिल के जज़्बातों का जख्म भरा जो पल बीता हैं
उस बीते पल याद रखूँ या, उससे रिस्ता तोड़ चलूँ

©------------------------------- हेमन्त चौहान

कुंडलिया
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सोचा बैठा मैं रहा, चल कीजै कुछ काज
पड़े पड़े है खाट में, बहुत दिना भए आज
बहुत दिना भए आज, हिलाय देह कू लीजै
थोडा करके काज, जगत कू भी कुछ दीजै
हेमंत चलय आज, छोड़ के सारे लोचा
कर पूरन वो काज, करन कू जो तू सोचा
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©-----------------------हेमन्त चौहान

रंगीन फ़िज़ा में चाँद दिखा है
जो अपनी छत पर आज दिखा है
पाने की उसको पहुँच नहीं बस
लगे भाग में दीदार लिखा है

©---------------हेमन्त चौहान

दोहा
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उपकारी सम वृक्ष के, कोउ न दूजा होय
तपत वृक्ष है धूप में, छाया लेवत कोय
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©---------------------हेमन्त चौहान

था बहुत दूर तक जाना मगर मैं जा नहीं पाया
था कोइ गान भी गाना उसे भी गा नहीं पाया
सफल तो हो गया था मैं, जख्म दिल के छुपाने में
मगर मैं हूक उठने पर आंशू रोक नहीं पाया

©-------------------------- हेमन्त चौहान

जो तुम चलते साथ में मेरे

खुशियों की सौगात लिए
कुछ पल होते साथ में मेरे
बनकर वक्त भी लयकारी
लय मिलाता साथ में मेरे
गद-गद होता मेरा मन भी
जो तुम चलते साथ में मेरे

अरमान भी पूरे हो जाते
अपूर्ण से जीवन में मेरे
प्रकृति गाती जीवन मंगल
मंगल मय जीवन में मेरे
ना थकना होता कभी राह में
जो तुम चलते साथ में मेरे
© ----- हेमन्त चौहान

कुछ उसकी चाहत ऐसी थी
मैं उसे देखना भूल गया
पाने की उसकी ख्वाहिस में
मैं बातें करना भूल गया

आँखों में भी देख लिया तो
मैं आँखों में ही डूब गया
लब उसके जो देख लिये तो
मैं उसको सुनना भूल गया

जो हाथ उसी ने थामा था
वो थमा हाथ भी छूट गया
लगता मेरा भाग यहाँ भी
खुश होते होते रूठ गया

वो मुझसे मिलने आई थी
मैं तो इसी बात भूल गया
जब आँख खुली तो पता चला
मैं देखा सपना भूल गया

©---------- हेमन्त चौहान

सोचूँ हमेशा कौन तरह से राहें चलूँ मैं अपनी पूरी
सबके मनों की गंगा में मैं डुबकी लगाऊँ कैसे पूरी
खुलकर बोलूँ तो सब कहते, नियम उलंघन होता है
पर थोड़े से शब्दों में कैसे बात करूँ मैं अपनी पूरी

©--------------------------------- हेमन्त चौहान

बिना भावों के शब्दों को, भला कोइ क्या गढ़ सकता
चले कलम जो कागज पर तो, एक पत्र है बन सकता
पढ़ने को तो नजर संग में, शब्दों का कुछ टंकण हो
कोरे कागज के पन्नो को, भला कोइ क्या पढ़ सकता

©--------------------------------- हेमन्त चौहान

सांझ सवेरे भाग दौड़ में, उलझा रहता हो कोई
चाहे दुखों के आ फेर में, फसता रहता हो कोई
सब धनवानों की दौड़ेंगी, सारी गाढ़ी भागों की
चाहे उनकी गाढ़ी से ही, कुचला जाता हो कोई

©--------------------------- हेमन्त चौहान

सम्बन्धों की परिभाषा के, बोल अनोखे होते है
कुछ अपनों को तो पाते हैं, अपने ही कुछ खोते है
उल्टा सीधा फेर बना है, पूरा जीवन जीने का
कुछ लोग खुशी से जीते हैं, जीने में कुछ रोते हैं

©---------------------------- हेमन्त चौहान

सोच रखा था मैंने जितना, मन में उसके प्यार नहीं
जो मन के अंदर फहमी थी, उसका कोई सार नहीं
उसके ऊपर हर पल मैंने, समझा था अधिकार मगर
पाले मन में जितना था मैं, उतना भी अधिकार नहीं

©-------------------------------- हेमन्त चौहान

अरमान तले ही जीवन के, बसे हुए हैं भाव मेरे
मैं ही जानू कैसे रहते, दबे हुए जज़्बात मेरे
यादों में उसकी रातों को, मैं तो लेटा रहता हूँ
पर बन मोती बह जाते हैं,छुपे हुए जज़्बात मेरे

आकर कहता कोई मुझसे, क्या सोचे तुम रहते हो
बात किसी से ना हीं करते, चुप चुप से क्यों रहते हो
मन से अपने कोई बातें, क्या करते तुम रहते हो
बतला दो कुछ हमको भी जो, दिल में छुपाए रहते हो

बतलाया है उसको मैंने, यह पहचान छुपा ली है
सोचूँ उसके बारे में जो , बनता जीवन गाली है
उसके जाते लगता मुझको, मेरा जीवन खाली है
झूँठ मूट का प्यार बना हैं, रिश्ता नाता जाली है

चुपके बैठे रहता हूँ तो, घावें भर से जाते हैं
मन में चुभते रहते हैं जो, थोड़े मिट से जाते हैं
यादें उसकी ताजा होते, दिल में चुभते जाते हैं
यादों
का जो साथ मिले तो, पल सारे कट जाते हैं

©---------------------------- हेमन्त चौहान

अरमान तले ही जीवन के, बसे हुए हैं भाव मेरे
मैं ही जानू कैसे रहते, दबे हुए जज़्बात मेरे
यादों में उसकी रातों को, मैं तो लेटा रहता हूँ
पर बन मोती बह जाते हैं, छुपे हुए जज़्बात मेरे

©---------------------------- हेमन्त चौहान