Saturday, January 7, 2012

जिंदगी की बढ़ती हुई राहों में , Jindgi ki badhti hui rahon main

Hemant Chauhan
Hindi Kavita

जिंदगी की बढ़ती हुई राहों में ,
तूने अपना साथी मुझको माना ना !
एक ही तो चाहत थी मन की ,
तूने उस चाहत को पहचाना ना !
हर दुख सुख मे साथी बनकर ,
साथ खड़ा हुआ मैं हमेशा तेरे !
मैने तेरे मन को तो जान लिया ,
मगर तूने मुझको पहचाना ना !!

जीवन की बदली सी राहों मे ,
परिवर्तित सा होता ही रहता सब !
इस जहाँ मे कुछ भी तो नही स्थिर,
जैसे उड़ता ही तो रहता सब !
मैने तो तुझको अपना मान लिया ,
तूने मुझको अपना माना ना !
मैने तेरे मन को तो जान लिया ,
मगर तूने मुझको पहचाना ना !!

तू बुलाती कभी मुझको तो,
दौड़ा चला आता पास में तेरे मैं !
तोड़कर समाज की सब रीतो को ,
निभाता रिस्ता साथ तेरे मैं !
मैने सबकुछ तुझको बता दिया ,
तूने कभी कुछ भी तो जाना ना!
मैने तेरे मन को तो जान लिया ,
मगर तूने मुझको पहचाना ना !!

ना हो बेसक कोई भी साधन ,
पैदल भी चला आता पास मैं तेरे!
छोड़कर सारी दुनियाँ को भी ,
कदम भी मिलता साथ मैं तेरे !
मैने तो बस तेरा ही बनना चाहा ,
तूने ही मेरे दिल को जाना ना!
मैने तेरे मन को तो जान लिया ,
मगर तूने मुझको पहचाना ना !!

मेरे दिल के भी अरमानो की ,
बहती थी हवा जो निरंतर सी !
मेरे मंन की चेतन भावनाएँ ,
अब तो हो गयीं वो जैसे जर सी !
मैने तो तुझसे कुछ कहना चाहा ,
मगर तूने कभी सुनना
चाहा ना!
मैने तेरे मन को तो जान लिया ,
मगर तूने मुझको पहचाना ना !!

तेरे संग बीते हर पल को ,
मैने दिल के अंदर समेट लिया !
अपना दिल भी देकर तुझको ,
अपना दिल भी तुझे भेंट किया !
मैने तो तुझको ही अपनाना चाहा ,
तूने चाहा मुझको अपनाना ना!
मैने तेरे मन को तो जान लिया ,
मगर तूने मुझको पहचाना ना !!

मैने प्यार का एक कदम बढ़ाया ,
तूने मुझको ही वही रोक दिया!
क्या कहता मैं भी तो तुझसे ,
तूने तो कहने से पहले ही टोक दिया!
मैने तो कदम मिलना भी चाहा ,
तूने साथ मेरे चलना ना चाहा ना!
मैने तेरे मन को तो जान लिया ,
मगर तूने मुझको पहचाना ना !!

===हेमन्त चौहान===

Friday, January 6, 2012

जिसको बनाया मैने धड़कन , Jisko banaya maine dhadkan

Hemant Chauhan

Hindi Kavita




जिसको बनाया मैने धड़कन ,
कैसे भुला दूं भला उसको !
वो ही दूर चली गयी मुझसे ,
दिल में बसा रखा है जिसको !
उसको अपनी खुशियाँ दिखीं तो ,
खुशियों की उसने राह पकड़ ली !
वो ही मुझको धोखा दे गयी ,
प्यार किया था मैने जिसको !१!

जिसकी चाहत मे पागल होकर ,
भटकता फिरता राहों में !
वो ही अब दूर है मुझसे ,
कभी था मैं जिसकी बाहों में !
उसको अपनी खुशियाँ ही याद रहीं ,
मैं भी ना याद रहा उसको !
वो ही मुझको धोखा दे गयी ,
प्यार किया था मैने जिसको !२!

अपने निर्मल मन के साथ में ,
धोखा दिया ना उसे किसी बात में !
उस हाथ से हाथ झड़क दिया ,
थमा था मेरा हाथ जिस हाथ में !
धोखा उसने नही दिया शायद ,
मेरे भाग ने धोखा दिया मुझको !
वो ही मुझको धोखा दे गयी ,
प्यार किया था मैने जिसको !३!

उसके लिए मैने अपनी चाहत ,
बिन  सोचे लुटा दी उसपर !
उसने ही मेरा दिल तोड़ दिया ,
भरोसा किया मैने जिस पर !
मेरी निश्च्छल चाहत पर भी ,
शायद ना भरोसा हुआ उसको !
वो ही मुझको धोखा दे गयी ,
प्यार किया था मैने जिसको !४!

मैने तो भरोशा किया उसपर ,
जिसको उसने तोड़ दिया !
अपना जीवन उसको सौंपा ,
उसको भी उसने मरोड़ दिया !
वो ही अकेला कर गयी मुझको ,
अपना जीवन माना जिसको !
वो ही मुझको धोखा दे गयी ,
प्यार किया था मैने जिसको !५!

मेरे दिल को तोड़कर उसने ,
मेरे जीवन को भी उजाड़ दिया !
जो ख्वाबों पौधा सींचा था ,
उसको भी उसने उखाड़ दिया !
उसने ही मेरे जीवन में डाका डाला ,
रखवाला बनाया मैने जिसको !
वो ही मुझको धोखा दे गयी ,
प्यार किया था मैने जिसको !६!

मैने उसको चाहा दिल से ,
मगर उसने मुझको धोखा दिया !
उसने जहर मिला दिया उसमें ,
लबों का जाम जो मैने पीया !
वो तो जहर का प्याला निकला ,
समझ रहा था मैं मधुशाला जिसको !
वो ही मुझको धोखा दे गयी ,
प्यार किया था मैने जिसको !७!

उसकी चाहत में अँधा था इतना ,
ना समझ पाया मैं उसके छल को !
जिस मे ना कभी पानी निकला ,
चलाता रहा मैं उस नल को !
वो तो गैर निकली बाद में ,
अपना समझता रहा मैं जिसको !
वो ही मुझको धोखा दे गयी ,
प्यार किया था मैने जिसको !८!





===हेमन्त चौहान===



Thursday, January 5, 2012

जो बचपन में उँचा उठ जाए , Jo bachpan men uncha uth jaye


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !
जो तीव्रता से आगे बढ़ जाए ,
उसको पछाड़ने वाला कोई नहीं !
पराक्रम ही तो इस दुनियाँ में ,
पहचान किसी की होती है !
जो बचपन में ही पराक्रमी हो जाए ,
उसे हराने वाला कोई नहीं !!

अनुभव की पराकाष्ठा ही तो ,
किसी व्यक्ति को विशेष बनाती है !
उसके कर्मों की गति ही तो ,
व्यक्ति को पहचान दिलाती है !
जो बचपन में ही सद्कार्मी हो जाए ,
उससे बड़ा कर्मयोगी कोई नहीं !
जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !!

जो ज्ञानता के धरातल पर ही ,
अपने कदम बढ़ाता चलता हो !
ज्ञानवान ही कहलाता हमेशा ,
और ज्ञान बाँटता भी चलता वो !
जो बचपन में ही ज्ञानी हो जाए ,
उसे पढ़ाने वाला कोई नही !
जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !!

जो जाता हो उस राह पर नित ,
जिस राह पर भटके लोग मिलें !
सद्कर्म की उनको राह बताता ,
जिस पर किसी को ना दुख मिले !
जो खुद ही सभी के काम आए ,
उससे कार्य कराने वाला कोई नहीं !
जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !!

जो जनहित की खातिर हमेशा ,
जन जन को एकत्रित करता हो !
जो जनहित से मिले दंड को ,
हमेशा खुद ही खुद सहता हो !
जिसके खड़े होने से पंक्ति बने ,
उसे पंक्ति से हटाने वाला कोई नही !
जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !!

जो परमार्थ के ही सागर में ,
डुबकी लगाता निस दिन हो !
ना जाने भला कर दे किसका ,
किस वक्त और किस दिन वो !
जो औरो का भला करता हो ,
उसका बुरा करने वाला कोई नही !
जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !!

===हेमन्त चौहान===

Wednesday, January 4, 2012

मुझे पता है मेरा मकसद , Mujhe Pata hai mera maksad


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है !
क्या छोड़ना है पीछे मुझको ,
क्या मुझको पाना है !
दिल में छुपे हैं कुछ अरमान ,
और सोच रखा है मैने ये !
मुझको तेरा ही बनना है ,
और तुझको अपना बनाना है !१!

मैं मिला हूँ जब  से तुझसे ,
तब से तुझमें ही खो गया !
थका हूँ जब भी चलते चलते ,
तेरी गोद में ही सो गया !
सोकर तेरी ज़ुल्फोन की छांव में ,
अपनेपन को जाना है !
मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है !२!

तुझको अपने दिल में बसाकर ,
तुझको अपनी पहचान बनाकर !
मुझको भी तो सुकून मिलता ,
अपनेआप को तेरा बताकर !
मैने तुझको जब से देखा ,
तुझे ही अपना जीवन माना है !
मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है !३!

तेरी चाहत की चाहत तो ,
मेरे दिल में हमेशा रहती !
तू तो मेरी धड़कन है ,
जो मेरे दिल में बस कर धड़कती !
तेरी बाहों में समाकर ही तो ,
जीवन के सार को जाना है !
मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है !४!

तेरे साथ की अनुभूति तो ,
किसी जन्नत से कम नही !
तेरे आने से खुशियाँ आईं ,
अब जीवन मे कोई गम नहीं !
तेरे साथ मिलकर ही तो ,
जीवन की रहो पर बढ़ते जाना है !
मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है!५!

जिंदगी की अभिलाशाओं में ,
तू ही तो पहली आशा !
तू ना कभी रूठना मुझसे ,
वरना नही रहेगी जीवन की आशा !
तेरे बिन जीना मुश्किल ,
हर पल तेरे साथ बिताना है !
मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है!६!

अनदेखा था जो सपना मेरा ,
उसको भी देख लिया मैने !
जब से मिली है तू मुझको ,
संपूर्णता को पा लिया मैनें !
सुन रहा हू उस मीठे सुर को ,
छेड़ा जीवन का जो तराना है !
मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है!७!

उसका नशा बरकरार है अब तक ,
तेरे लबों का जाम जो पीया है !
मर भी गया तो गम नहीं ,
मैने पलों में शादियों को जीया है !
जीना नहीं मेरा मकसद ,
मकसद तो तेरा साथ निभाना है !
मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है !८!

तेरी आँखों मे झँकता हूँ जब ,
खुद को उनमें पता हूँ !
जब बाहों मे भरता हूँ तुझको ,
तुझमे ही समा जाता हूँ !
लेकर आगोश में अपने तुझको ,
हमेशा को पिघल जाना हैं !
मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है !९!

मेरे दिल में जो तेरी चाहत ,
कौन तोल सकता भला इसको !
करेगा केवल वो ही हिम्मत ,
चाहत की गहराई ना पता जिसको !
चाहत दिखना नही मेरा मकसद ,
बस चाहत को तुझपर लुटाना है !
मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है !१०!

केवल इस जनम में ही नही ,
हर जनम तेरे साथ जीऊँगा मैं !
तुझे आगोश लेकर हमेशा ,
तेरे लबों का जाम पीऊंगा मैं !
तुझको अपने साथ में लेकर ,
जीवन का हर कदम बढ़ाना है !
मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है !११!

तू ही तो जीवन है मेरा ,
तू ही मेरे जीवन की छाया है !
हर खुशी घर में है मेरे ,
जब से मैने तुझको पाया है !
जी रहा हूँ साथ में तेरे ,
मुझको तेरे साथ ही मारना है !
मुझे पता है मेरा मकसद ,
कहाँ तक मुझको जाना है !१२!



  ===हेमन्त चौहान===

Sunday, January 1, 2012

अब तक उसको ढूंड रहा हूँ , Ab tak usko dund raha hun


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



अब तक उसको ढूंड रहा हूँ ,
कैसे मिलेगी वो कहाँ पर जाकर !
जिंदगी की ये राह भी मेरी ,
ना जाने थमेगी कहाँ पर जाकर !!

ना जाने क्यों बेगाना कर गयी ,
हर रिश्ता वो मुझसे निभाकर !
पूर्ण होकर भी अपूर्ण रह गया ,
कुछ पलों का उसका साथ पाकर !
खुद ही चलना जैसे भूल गया ,
औरो को  राहों पर चलाकर !
जैसे प्यासा ही लौट आया हूँ ,
मैं पानी के दरिया तक जाकर !
जिंदगी की ये राह भी मेरी ,
ना जाने थमेगी कहाँ पर जाकर !!

चुभता रहता कुछ हरपल हरदम ,
जैसे काँटों की सैया पर सोया हूँ !
जबसे मैं बिछड़ा हूँ उससे ,
दिल के आँसुओं से रोया हूँ !
तन्हाई की वो फसल काट रहा ,
जिस का बीज खुद ही बोया हूँ !
सब कुछ जैसे खो दिया मैने ,
अपने जीवन में सब कुछ पाकर !
जिंदगी की ये राह भी मेरी ,
ना जाने थमेगी कहाँ पर जाकर !!

उपलब्धियाँ पाने की थी लालसा ,
मगर डूब गया तन्हाई की गर्तो में !
बँधे हुए हैं हाथ भी मेरे  ,
वरना धड़कनो को भी देता बंद कर तो मैं !
साँसें हैं बेशक पास में मेरे ,
मगर जी रहा हूँ जीवन की कुछ शर्तों में !
ना भरने वाला घाव मिला है ,
जिंदगी में अब उससे बिछड़कर !
जिंदगी की ये राह भी मेरी ,
ना जाने थमेगी कहाँ पर जाकर !!

क्यों ना आई वो पास में मेरे ,
ना जाने वो कहाँ चली गयी !
किससे पता करूँ मैं ये ,
खुश भी है वो या कही छली गयी !
ऐसी क्या उसकी मजबूरी थी ,
कि बिन कहे वो चली गयी !
मैं परेशन हूँ फिकर में उसकी ,
कम से कम जाती मुझे बताकर !
जिंदगी की ये राह भी मेरी ,
ना जाने थमेगी कहाँ पर जाकर !!

कैसे रोक लूँ अपने आंशू ,
कैसे जज्बातों को थाम लूँ मैं !
तन्हाई के इस आलम में ,
कैसे धैर्य से काम लूँ मैं !
जिसमें उसका चेहरा दिखता ,
कैसे पी वो जाम लूँ मैं !
उसकी भी कोई तो मजबूरी होगी ,
वरना क्या मिलेगा उसे मुझे सताकर !
जिंदगी की ये राह भी मेरी ,
ना जाने थमेगी कहाँ पर जाकर !!

जीवन जीने की एक राह मिली थी ,
पल भर उससे भटक गया !
जो सज़ा था ख्वाब दिल में  मेरे ,
वो भी अधर में लटक गया !
सारे जीवन का मकसद ,
उससे बिछड़ कर कहीं झटक गया !
प्यासा ही रह गया हूँ मैं तो ,
जैसे कुँए पर भी खुद जाकर !
जिंदगी की ये राह भी मेरी ,
ना जाने थमेगी कहाँ पर जाकर !!

कैसे बदलता भाग्य भी पल पल ,
अब मैं ये भी समझ गया हूँ. !
जीवन की राहों पर चलते चलते ,
उससे बिछड़ कर मैं रुक गया हूँ !
अब ना हिम्मत आगे बढ़ने की ,
उससे बिछड़ कर मैं थक गया हूँ !
ना जाने वो क्यों भूल गयी ,
अपना एहसास मुझको कराकर !
जिंदगी की ये राह भी मेरी ,
ना जाने थमेगी कहाँ पर जाकर !! 

===हेमन्त चौहान===