Thursday, December 8, 2011

उसपर तरस भी आता है , Uss par taras bhi aata hai


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



गुस्सा भी आता है ,
उसपर तरस भी आता है !
जो पहले कहकर अपना ,
फिर छोड़ जाता है !
क्यों मिलाता है मौला ,
दुनियाँ में उस सख्स से !
जो होठों का जाम पिलाकर ,
फिर मुँह मोड़ जाता है !१!

अपना कहकर भी हमेशा ,
झूठ बोलता रहता जो !
वो ही अकेला कर जाता है ,
साथ में हमेशा रहता जो !
जो नज़रों का जाम पिलाकर ,
नज़रें ही फेर जाता है !
गुस्सा भी आता है ,
उसपर तरस भी आता है !२!

दुनियाँ मे सब छोड़कर भी ,
साथ दिया मैनें जिसका !
समा के जिसकी बाहों में ,
लाबो का जाम पीया जिसका !
जो खुद का नशा कराकर ,
सोता ही छोड़ जाता है !
गुस्सा भी आता है ,
उसपर तरस भी आता है !३!

नज़रें दौड़ा कर देखो ,
टूटा है दिल बस बफ़ादार का !
बफा को ही मिलता धोखा ,
हर जगह हर बार का !
जिसको चाहा जिंदगी से ज़्यादा ,
वो ही दिल तोड़ जाता है !
गुस्सा भी आता है ,
उसपर तरस भी आता है !४!

वही क्यों ओझल हो जाता है ,
जो निगाहों मे बसा हो !
बफा को मिलती है बेबफा ,
चाहे कोई भी दिशा हो !
जो सुलता ज़ुल्फो की छाव मे ,
वो ही सोता छोड़ जाता है !
गुस्सा भी आता है ,
उसपर तरस भी आता है !५!

बेबफा होती है कैसी ,
मुझे पता है, वो कौन है !
चाहत है बहुत कुछ कहने की ,
मगर उसके लिए ही मौन हैं !
जो जीवन की राहों पर ,
बढ़ा कर आगे भटका जाता है !
गुस्सा भी आता है ,
उसपर तरस भी आता है !६!

मेरा तो निर्मल मन ,
नही करेगा धोखा किसी से !
उसे भी चाहता रहेगा हमेशा ,
मिला है मुझको धोखा जिससे !
जिसे बनाना चाहा अपना ,
वही बेगाना कर जाता है !
गुस्सा भी आता है ,
उसपर तरस भी आता है !७!

झिलमिल करते रहते ,
आसमान मे तारे दिखते !
वही दिल को तोड़ देता है ,
जिसे दिल में हर दम रखते !.
जो दिखाकर ख्वाब जिंदगी के ,
ख्वाबों को ही तोड़ जाता है !
गुस्सा भी आता है ,
उसपर तरस भी आता है !८!

बढ़ते तो है सभी राह में ,
कोई तो मंज़िल पाने को !
स्वार्थ की खातिर भी बढ़ता है ,
कोई तो रिश्ता निभाने को !
जो अपनी खुशियों की खातिर ,
दिलों को भी तोड़ जाता है !
गुस्सा भी आता है ,
उसपर तरस भी आता है !९!

उसमे तो बचपन भरा इतना ,
जो मेरे दिल से भी खेला !
वो किसको अपना बना सकता ,
जिसका दिल ही हो मैला !
जो अपनी छल भारी चाहत से,
रिश्तों को निभाता है !
गुस्सा भी आता है ,
उसपर तरस भी आता है !१०!


===हेमन्त चौहान===


Monday, December 5, 2011

मन दुखता सा मेरा हर पल , Man Dukhta Sa Mera Har Pal


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



डूबा रहता यादों में उसकी ,
मिला हूँ जैसे सागर तल से !
खुद से ही अनजान के जैसा ,
आज्ञान रहा मैं हर हलचल से !
पर्वत सी विशाल मेरी आशाएं ,
छोटी हो गयीं तिनके जैसी !
मन दुखता सा मेरा हर पल ,
बिछड़ा मैं उससे जिस पल से !१!

मेरे जीवन की भी चेतना ,
अचेतन हो गयी हो जैसे !
मेरे मन को तो लगता ऐसे ,
मुझको भूल वो गयी हो जैसे !
दुख से पीड़ित से, मेरे जीवन में ,
ना मिलती खुशी किसी पल से !
मन दुखता  सा मेरा हर पल ,
बिछड़ा मैं उससे जिस पल से !२!

मेरे आशावाद भरे जीवन मैं ,
निराशाओं का सा अंधकार हुआ !
हल्के हल्के से मेरे मन पर ,
पर्वत के जैसा कोई भार हुआ !
मैं तो छला गया हूँ जैसे ,
खुद की मोहब्बत के छल से !
मन दुखता सा मेरा हर पल ,
बिछड़ा मैं उससे जिस पल से !३!

बीतता साथ कभी था हमारा ,
मगर अब हमारे बीच मे दूरी है !
समझ तो रहा मैं भी उसको ,
उसकी भी कोई तो मजबूरी है !
सिकायत भी नही है मेरी कोई ,
उसके साथ बीते किसी पल से !
मन दुखता सा मेरा हर पल ,
बिछड़ा मैं उससे जिस पल से !४!

बैठा था कभी साथ मैं उसके ,
याद कर रहा उस सुहाने पल को !
पैर भी डुबोय थे बैठकर किनारे ,
देख रहा उस बहते जल को !
मुस्कान ढूँडने की कोशिश करता ,
बहती नदी की कल कल से !
मन दुखता सा मेरा हर पल ,
बिछड़ा मैं उससे जिस पल से !५!

तनहाई की पीर भी तो मेरी ,
किसी सागर के ही तो जैसी है !
कोई भी तो नही बताता मुझको ,
वो खुश भी है या कैसी है !
खुश रखना सदा ही उसको ,
गुज़ारिस करता मैं तो हर पल से !
मन दुखता सा मेरा हर पल ,
बिछड़ा मैं उससे जिस पल से !६!

मैं दिखाऊंगा नफ़रत ही उसको ,
मिल भी गया उसको कभी !
ये देख वो भी नफ़रत करेगी ,
मुझको तो वो भूल पाएगी तभी !
वो बल तो नही है मेरे अंदर ,
भुला सकूँ उसको जिस बल से !
मन दुखता सा मेरा हर पल ,
बिछड़ा मैं उससे जिस पल से !७!

===हेमन्त चौहान===