Thursday, January 5, 2012

जो बचपन में उँचा उठ जाए , Jo bachpan men uncha uth jaye


Hemant Chauhan

Hindi Kavita



जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !
जो तीव्रता से आगे बढ़ जाए ,
उसको पछाड़ने वाला कोई नहीं !
पराक्रम ही तो इस दुनियाँ में ,
पहचान किसी की होती है !
जो बचपन में ही पराक्रमी हो जाए ,
उसे हराने वाला कोई नहीं !!

अनुभव की पराकाष्ठा ही तो ,
किसी व्यक्ति को विशेष बनाती है !
उसके कर्मों की गति ही तो ,
व्यक्ति को पहचान दिलाती है !
जो बचपन में ही सद्कार्मी हो जाए ,
उससे बड़ा कर्मयोगी कोई नहीं !
जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !!

जो ज्ञानता के धरातल पर ही ,
अपने कदम बढ़ाता चलता हो !
ज्ञानवान ही कहलाता हमेशा ,
और ज्ञान बाँटता भी चलता वो !
जो बचपन में ही ज्ञानी हो जाए ,
उसे पढ़ाने वाला कोई नही !
जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !!

जो जाता हो उस राह पर नित ,
जिस राह पर भटके लोग मिलें !
सद्कर्म की उनको राह बताता ,
जिस पर किसी को ना दुख मिले !
जो खुद ही सभी के काम आए ,
उससे कार्य कराने वाला कोई नहीं !
जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !!

जो जनहित की खातिर हमेशा ,
जन जन को एकत्रित करता हो !
जो जनहित से मिले दंड को ,
हमेशा खुद ही खुद सहता हो !
जिसके खड़े होने से पंक्ति बने ,
उसे पंक्ति से हटाने वाला कोई नही !
जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !!

जो परमार्थ के ही सागर में ,
डुबकी लगाता निस दिन हो !
ना जाने भला कर दे किसका ,
किस वक्त और किस दिन वो !
जो औरो का भला करता हो ,
उसका बुरा करने वाला कोई नही !
जो बचपन में उँचा उठ जाए ,
उसको झुकाने वाला कोई नहीं !!

===हेमन्त चौहान===

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